ख्यालात (shayari on hope and positivity)
इतने तो मजबूर नहीं तुम, कि हालात के ग़ुलाम हो जाओ, ज़रा बेबसी का पर्दा हटाकर तो देखो, हर जगह खुद के वजूद का निशान पाओगे... समझौता कर लेते हैं, चलो अपने हालातों से, पर फिर सोचतें हैं, ये हालात भी तो हमारी ही पैदाइश हैं... देर तक देखते रहे, हम मंज़िले-मक़सूद को, फिर याद आया कि इस कशमकश में, सफ़र का लुत्फ उठाना तो भूल ही गए... अपना किरदार गढ़ो, चाहे ये मसरूफ ज़माना तुम्हारी कदर करे ना करे, तुम फिर भी आज़ाद परिंदे से उस खुले आसमान में उड़ो, और जुनून से अपनी हस्ती के अब्रों की चादर बुनो... ज़िन्दगी जी कर तो देखो, क्यूँकि काटते तो सभी हैं, मौत तो जब आनी है तब आनी है, उससे पहले ज़िन्दगी की हर पहेली बूझ कर देखो... हम थिरकना चाहते हैं ऐ ज़माने तेरे साज़ पर, मगर तू ऐसा ज़ालिम है कि, इन पैरों को हर बार बेड़ियों में जकड़ लेता है.. खैर, पैरों को कैद किया तो किया, तू कभी इन पँखों को ना बाँध पायेगा, हौंसलो की ऊँची उड़ान भरने से... नए किरदार में ढल जा, नए हालातों से हाथ मिला, ये ज़िन्दगी तो एक रंगीन फ़साना है, तू इसके हर रँग...