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Showing posts from January, 2020

ख़ुशी की फ़िराक़

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किस खुशी की फ़िराक़ में खानाबदोशों से फिरते हो, जब बच्चे थे तो एक खिलौना पाकर ही चहक जाते थे, अब जो सयाने हो गए हो तो सारी कायनात मिलने पर भी गुमसुम रहते हो.. सुनो तो, किस जल्दी में हमेशा होते हो, वक़्त का काँटा तो चलता ही रहेगा, तुम तो दो पल रुक कर इस लम्हे का लुत्फ़ उठाओ... जिस खुशी को तुम नायाब समझते हो ना, उसे अपने घर में ही ढूँढो ज़रा, हर कोने में उसका निशान पाओगे... उस फ़लक के चाँद को पाने की ख्वाहिश में, क्यूँ इस ज़मीन पे गिरती चाँदनी को अनदेखा करते हो... बताओ तो किस खुशी की फ़िराक़ में तुम खानाबदोशों से फिरते हो... चलो आज फ़र्ज़ के धुँए में गुमशुदा उस बेपरवाह बचपन की गलियों का एक चक्कर लगाएं, उस कागज़ की कश्ती को एक बार फिर से बारिश के पानी में चलाएं, माँ की गोदी में सर रखकर परियों की दुनिया की सैर कर आएं, बहुत अरसा हुआ दोस्तों के साथ हँस खेलके, चलो आज उनसे बेवजह की गप्पें लड़ाएं.. हर रोज़ सुबह office की जँग की तैयारी में इस कदर मसरूफ़ रहते हो, आओ ज़रा balcony में उगते सूरज के नीचे सुकून से गरम चाय की चुस्की लगाएं... Ac वाले कमरों में रोज़ अपनी स

अजब ज़िन्दगी

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ऐ ज़िन्दगी बहुत खूब हो तुम, कभी पर्बत पर गिरती वो सूरज की पहली किरण, तो कभी पत्तों पर पड़ती ओस की बूंद हो तुम.. कभी सर्दी की शीतल पवन, तो कभी गर्मी की जलती धूप हो तुम.. ऐ ज़िन्दगी सच में बहुत ही खूब हो तुम.. कभी रुकती सी तो कभी चलती सी, कभी गिरती सी तो कभी संभलती सी, उस मासूम से बच्चे का रूप हो तुम... कभी उड़ाने भरती तो कभी हर फूल पे ठहरती, उस तितली के पँखों सी रंगीन हो तुम.. ऐ ज़िन्दगी सच में बहुत ही खूब हो तुम... कभी लुक छिप कर हमें सताती, तो कभी सामने झट से आ जाती, कभी रात में जुगनू कई चमकाती, तो कभी दिन में भी तारे दिखलाती, कभी बिन मैसम पानी बरसाती, तो कभी बिन बोले कहानियाँ कई सुनाती, बड़ी नटखट बड़ी ही शैतान हो तुम... ऐ ज़िन्दगी सच में बहुत ही खूब हो तुम.. कभी लगता है तुम रेत सी हाथों से फ़िसल रही हो, तभी तुम दिल के कोने में एक अधूरे ख्वाब सी छुप जाती हो, फिर रात होने पर इन आँखों में कई दिये जलाती हो, और हमारी सुबह को रौशन कर जाती हो, ऐ ज़िन्दगी तुम हर बार हमें ऐसे क्यूँ चौंकाती हो, बोलो ना, तुम हमें हज़ारों रँग क्यूँ दिखलाती ह

हार से क्यूँ डरते हो...

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हार से क्यूँ डरते हो, हार तो वो सिखलाती है, जो कामयाबी कभी सिखा नहीं पाती है, ये तो मिट्टी को भी सोना कर जाती है, ज़िन्दगी जीने का सही रास्ता बतलाती है... तुम हार से क्यूँ डरते हो... समझते हो जिसको मौत तुम, वो तुम्हारा एक नया जन्म है, तुम्हारे वजूद को बनाने का एक नया कर्म है... तुम्हे लगती हैं जो बेड़ियाँ, वो शुरुआत है उड़ान की, आसमान को छूने के निशान की... अगर लगता है कि ये तुम्हें वहीं ले आयी है, जहाँ से तुमने सफ़र शुरू किया था, तो सोच लो कि ये तुम्हे कुछ समझाती है, और तुम्हारी कमियाँ आईने में दिखलाती है... तो ज़रा ठहरो दो पल आराम करो, अपनी कमियों पे कुछ काम करो... आज जिसके कहर से हताश हो, कल उसके तेज से चमक जाओगे, और आगे ही आगे बढ़ते जाओगे, फिर मुश्किलों के सागर से, जीत के मोती ढूँढकर लाओगे... इसलिए हार से मत घबराओ तुम, और इसे हँस कर गले लगाओ तुम, क्यूँकि जब हारने के बाद तुम कामयाबी छूने जाओगे, तो उसकी सच्ची कदर कर पाओगे.. बोलो, हार से क्यूँ डरते हो... "Fail harder, fail successfully...

लेखक

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मैं खुद को एक amateur poet मानती हूँ... हालांकि मेरे पास कोई training नहीं है पर क्यूँकि मैं काफ़ी सालों से लिखती हूँ, तो मैं एक poet के अन्दर के जज़बात को कुछ हद्द तक समझ सकती हूँ..  दुनिया अक़्सर एक लेखक या कवी को seriously नहीं लेती.. मगर लोग ये भूल जातें है, कि एक लेखक के अल्फ़ाज़ दुनिया बदलने की ताक़त रखते हैं...इसी बात पर मैंने कुछ lines लिखीं थीं... कभी कभी सोचती हूँ, कि लिखने वाले अपने अल्फ़ाज़, एक diary के पन्नों में क्यूँ छिपाते हैं... शायद इसलिये कि दुनिया उन अल्फ़ाज़ों में छिपे, कड़वे सच से घबराती है, और उन्हें 'दीवाना' कहकर बुलाती है... एक लेखक की आवाज़ उसकी क़लम या pen में होती है.. जो उसके अन्दर के हर जज़्बे को बड़ी ही खूबसूरती से कागज़ पर उतार देता है.. अगर आप सोचो तो ये बोहोत ही amazing बात लगती है, कि एक लेखक को बोलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती, क्यूँकि वो तो बिना कुछ बोले ही अपने कलम से निकले अल्फ़ाज़ से बोहोत कुछ कह जाता है..इस पर मैंने एक छोटी सी कविता लिखी थी...   इसलिए मौन हूँ .. मैं लेखक हूँ, इसलिए मौन हूँ, मेरी कलम बोलती है, इसलिए मैं मौन हूँ, दिल में छुपे राज़ खोल