लेखक


मैं खुद को एक amateur poet मानती हूँ... हालांकि मेरे पास कोई training नहीं है पर क्यूँकि मैं काफ़ी सालों से लिखती हूँ, तो मैं एक poet के अन्दर के जज़बात को कुछ हद्द तक समझ सकती हूँ.. 
दुनिया अक़्सर एक लेखक या कवी को seriously नहीं लेती.. मगर लोग ये भूल जातें है, कि एक लेखक के अल्फ़ाज़ दुनिया बदलने की ताक़त रखते हैं...इसी बात पर मैंने कुछ lines लिखीं थीं...

कभी कभी सोचती हूँ,
कि लिखने वाले अपने अल्फ़ाज़,
एक diary के पन्नों में क्यूँ छिपाते हैं...
शायद इसलिये कि दुनिया उन अल्फ़ाज़ों में छिपे,
कड़वे सच से घबराती है,
और उन्हें 'दीवाना' कहकर बुलाती है...

एक लेखक की आवाज़ उसकी क़लम या pen में होती है.. जो उसके अन्दर के हर जज़्बे को बड़ी ही खूबसूरती से कागज़ पर उतार देता है.. अगर आप सोचो तो ये बोहोत ही amazing बात लगती है, कि एक लेखक को बोलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती, क्यूँकि वो तो बिना कुछ बोले ही अपने कलम से निकले अल्फ़ाज़ से बोहोत कुछ कह जाता है..इस पर मैंने एक छोटी सी कविता लिखी थी...
 
इसलिए मौन हूँ..

मैं लेखक हूँ,
इसलिए मौन हूँ,
मेरी कलम बोलती है,
इसलिए मैं मौन हूँ,
दिल में छुपे राज़ खोलती है,
इसलिए मैं मौन हूँ,
दुनिया को सिर्फ सच बोलती है,
इसलिए मैं मौन हूँ...
मेरी चुप्पी से ना धोखा खाना तुम,
इस कलम में मेरी आवाज़ है,
ये बात जल्दी ही समझ जाना तुम..
क्यूँकि मैं लेखक हूँ,
इसलिए मौन हूँ...

अगली कविता थोड़ी सी personal level पर है...जब मैंने लिखना शुरू किया था तो एक diary में लिखा करती थी...मेरे अन्दर जो भी जज़्बात या सवाल होते थे, उन्हें कविता के ज़रिए बाहर निकाल देती थी...तब एक झिजक थी उस diary को लोगों को दिखाने की, ये सोचकर कि लोग क्या कहेंगे.. पर अब कोई जिझक नहीं है ...क्यूँकि अब लगता है कि शायद मेरे लफ्ज़ किसी को motivation दे सकें, या कुछ ऐसा कर सकें जिससे दुनिया और खूबसूरत हो जाये... तो मेरी अगली कविता का शीर्षक है...

Dairy के पन्ने

एक वक़्त था,
जब मेरे अंदर के तूफ़ान मुझे मुझसे ही गुमराह कर जाते थे,
तब मेरी diary के पन्ने झरोखा बन जाते थे,
और ज़हन में छुपे सवालों को अल्फ़ाज़ों के ज़रिये बाहर ले आते थे,
फिर भी हिम्मत ना थी इन्हें दुनिया को दिखाने की,
अपने अंदर की आग को जवाबों के पानी से बुझाने की,
पर आज वक़्त कुछ और है,
ज़िंदगी पे तजुर्बों की मोहर है,
इसलिए अपने अल्फ़ाज़ों को बहने देती हूँ,
कुछ अपनी सुनाती हूँ कुछ तुम्हे कहने देती हूँ,
और इनसे दुनिया को बदलने की उम्मीद में जीती रहती हूँ...







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