अजब ज़िन्दगी




ऐ ज़िन्दगी बहुत खूब हो तुम,
कभी पर्बत पर गिरती वो सूरज की पहली किरण,
तो कभी पत्तों पर पड़ती ओस की बूंद हो तुम..
कभी सर्दी की शीतल पवन,
तो कभी गर्मी की जलती धूप हो तुम..
ऐ ज़िन्दगी सच में बहुत ही खूब हो तुम..

कभी रुकती सी तो कभी चलती सी,
कभी गिरती सी तो कभी संभलती सी,
उस मासूम से बच्चे का रूप हो तुम...
कभी उड़ाने भरती तो कभी हर फूल पे ठहरती,
उस तितली के पँखों सी रंगीन हो तुम..
ऐ ज़िन्दगी सच में बहुत ही खूब हो तुम...

कभी लुक छिप कर हमें सताती,
तो कभी सामने झट से आ जाती,
कभी रात में जुगनू कई चमकाती,
तो कभी दिन में भी तारे दिखलाती,
कभी बिन मैसम पानी बरसाती,
तो कभी बिन बोले कहानियाँ कई सुनाती,
बड़ी नटखट बड़ी ही शैतान हो तुम...
ऐ ज़िन्दगी सच में बहुत ही खूब हो तुम..

कभी लगता है तुम रेत सी हाथों से फ़िसल रही हो,
तभी तुम दिल के कोने में एक अधूरे ख्वाब सी छुप जाती हो,
फिर रात होने पर इन आँखों में कई दिये जलाती हो,
और हमारी सुबह को रौशन कर जाती हो,
ऐ ज़िन्दगी तुम हर बार हमें ऐसे क्यूँ चौंकाती हो,
बोलो ना, तुम हमें हज़ारों रँग क्यूँ दिखलाती हो...

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