चाँद की फ़ितरत
हमने सोचा चलो हम भी मशहूर हो जाएं, उस चाँद की तरह फ़लक का नूर हो जाएं, फिर याद आया कि, वो चाँद तो सुबह होते ही तनहा फ़ना हो जाता है... मगर फिर ये भी याद आया, कि हर रात वो वीरानियों से उठकर, उस आसमाँ के तात को, अपनी रौशनी से दोबारा चमका जाता है, और ये सिलसिला बस यूँही चलता जाता है...