बचपन का ख़्वाब


बचपन का एक ख्वाब,
फिर से देखा हमने,
उस कागज़ की कश्ती को पानी में,
फिर से फेंका हमने,
मगर अब उस कश्ती में वो रफ्तार नहीं,
जो ज़िन्दगी का हर बाँध पार कर जाए...
खैर चाहे उस कश्ती में अब वो रफ़्तार नहीं,
मगर ख्वाबों के दरिया में तो वो बहाव है,
जो कश्ती को साहिल तक ले जाये...

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