वो नज़्में
Have you ever read your old diary and reminisced those moments and that time when you used to write your heart out. When you had thousands of words and thoughts floating in your mind and poured them all out in that diary. When you yearned to fly high but were still cautious about that unknown something which was stopping you... Something similar happened to me when I found my old diary with my own old poems written in it a few years back.. I felt a sense of pride that I was such an uninhibited writer at one point, I also wondered why did I stop writing all these years.. was it because the words dried out or responsibilities and life took over.. thats what I have explored in this poem... But whatever it is, I believe that your words and poems are a means to unleash your most hidden dreams and desires, so you must keep writing and exploring the real you in order to break free them from the cage of societal norms!
आज एक बक्सा मिला अपने कमरे में,
उसमें से एक पुरानी diary निकली,
धूल में सनी हुई...
जब धूल हटाकर उसे खोला,
तो अपने हाथ से लिखी कुछ नज़्में मिलीं,
सिहाई कुछ फीकी पड़ गई थी,
मगर उन लफ़्ज़ों में चमक अभी भी बाकी थी..
उन्हें पढ़कर आँखों के सामने वो भूले लम्हे मुस्कुराने लगे...
ये उन दिनों की बात है,
जब हम अपना हाले-दिल बयान करते थे,
वो लफ़्ज़ जो ज़ुबान पर आने से पहले रुक जाते थे,
उन्हें कागज़ में पिरोया करते थे..
हाँ, ये उन बेपरवाह दिनों की बात है,
जब हम खुले आसमान में उड़ने की जल्दी में रहा करते थे,
मगर अपने पँख धीरे से फैलाया करते थे..
कुछ उलझे से सवाल थे ज़हन में,
कभी ज़िन्दगी की तनहाई को लेकर,
तो कभी प्यार की गहराई को लेकर,
जिन्हें हम कलम की धार से सुलझाया करते थे...
एक अजब सी बेचैनी भी थी दिल में,
जिसका हम ख्यालों के ढेर में इलाज ढूंढा करते थे...
हाँ, ये उन मदहोश दिनों की बात है...
अब एक अरसा हुआ कुछ लिखे,
और अपनी ख्वाहिशों से रूबरू हुए...
वो लफ्ज़ जो कभी पानी से बहा करते थे,
मानो जैसे सूख से गए हों,
वो ख्वाब जो कभी आंखों में तैरा करते थे,
मानो जैसे फ़र्ज़ के समंदर में डूब से गए हों...
क्या ये बढ़ती उम्र की इनायत है,
कि उन उलझे सवालों का जवाब मिल गया,
और हमें उस बेचैनी से करार मिल गया...
या फिर बहते वक़्त की बेरहमी,
कि सवालात और उलझ गए,
और ख्वाहिशें कहीं ज़िन्दगी की रेत में दफ़्न हो गईं...
इन्हीं मसलों को सुलझाने निकल पड़े हैं,
आज फिर हम अपने कलम को उठाये,
कुछ नई ख्वाहिशें सजाने,
और कुछ पुराने ख़यालों के सुराग़ ढूंढने...
Comments