इल्तिजा

ऐ ज़िन्दगी एक इल्तिजा है तुझसे,
कि हमें अपने आगोश में ले ले,
क्यूँ नासूर बनकर चूभती है,
क्यूँ शम्मा बनकर पिघलती है,
कभी तो इस दिल के झरोखे से हमें अपनी झलक दिखला,
दो पल ही सही,
कभी तो सुकून से प्यार के किस्से सुना..
ऐ ज़िन्दगी कभी तो हमपे ये मेहरबानी फरमा..
तुझे जीने की चाह में हम रोज़ मरते हैं,
तुझमें सफ़र करने को हम नजाने क्यूँ मचलते हैं,
जबकी हमको ये मालूम है कि तू हमें दगा देके जाएगी,
फिर भी हम तेरे दीदार को दीवानो की तरह तरसते हैं..
कैसा एकतरफा इश्क़ है ये,
की तुझको पाने के लिए हम दर दर भटकते हैं,
ऐ ज़िन्दगी हम तुझसे क्यूँ इतनी मोहोब्बत करते हैं..

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