एक गुज़ारिश
हमने तुम्हें ज़िन्दगी माना,
प्यार बेशुमार किया,
खुद को तुमपे कुर्बान किया,
मगर तुमने इसकी सज़ा हमें यूँ दी,
कि रिश्तों की कतार में सबसे आखरी मुक़ाम दिया,
सिर्फ इसलिए कि हमने चंद ख़्वाहिशों का तुमसे इज़हार किया?
चलो, अब कुछ ना कहेंगे हम,
और सब कुछ चुपचाप सहेंगे हम,
पर तुम कभी हमें उस कतार में आगे आने का मौका तो दो,
कभी यूँही नज़र भर हमें देख तो लो,
कभी दो पल बैठकर हमसे भी दिल की बात कहो,
कभी हमें भी हमनवा होने का सिला तो दो,
कभी तो हमें अपना वक़्त ईनाम में दो,
कभी हमें अपनी बाँहो के घेरे में पनाह तो दो,
कभी तो...
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