लड़की की कहानी
जब भी मैं किसी लड़की पे किसी भी तरह की violence की खबर सुनती हूँ तो दिल दहक जाता है... मैं भी एक लड़की हूँ और समाज के सभी rules मुझपे भी थोपे गए हैं, चाहे मेरी कोई ग़लती हो या ना हो.. जब मैं hostel में पढ़ती थी तो girls hostel का gate 10 बजे ही बन्द हो जाता था और कोई भी लड़की बाहर नहीं आ सकती थी, पर सब लड़के खुलेआम रात को घूमते थे, और reason बताया जाता था हमारी protection.. अरे हमें ही protect करते हो फिर हमें ही कैद भी करते हो!!! ये कहाँ का rule हुआ?? इस तरह के rules मुझसे पहली वाली generations की लड़कियों पर भी थोपे गये हैं, और आने वाली generations की लड़कियों पर भी थोपे जाएंगे... पर क्यूँ??? क्या लड़कियों को खुलकर जीने का कोई हक़ नहीं? क्या लड़कों पर कोई rules apply नहीं होते?? इन्ही कुछ सवालों के जवाब मैं इस कविता के ज़रिए समाज से पूछ रही हूँ...इस कविता का नाम है "लड़की की कहानी" जो शायद हर उस लड़की की कहानी है जिसने इस दुनिया में जनम लिया है...
एक दिन उस खुदा ने सोचा,
चलो मैं लड़की बनाऊँ,
और इस दुनिया की खूबसूरती कुछ और बढाऊँ...
फिर उसने मुझे बना तो दिया,
मगर हजारों बन्दिशों का बक्सा भी ईनाम में दिया,
हैवानियत का अंधेरा भी मेरे नाम कर दिया,
और लोगों को ये बताना भूल गया,
कि अगर ये ना होगी,
तो तुम ना होगे...
जब पैदा हुई मैं,
तो समाज के ठेकेदारों ने कहा,
"अरे ये तो लड़की आयी है,
वंश क्या खाक बढ़ाएगी!
माँ बाप पर बस बोझ बन जाएगी,
इसकी साँसे चलने से पहले चलो इसे कहीं दफ़्न कर आएं,
और इस मुसीबत से जैसे तैसे छुटकारा पाएं"
क्यूँकि वही दुनिया जो लक्ष्मी और दुर्गा को भगवान बनाती है,
मुझे मनहूस बताती है...
अगर किसी तरह मैं बच भी गई,
तो घरवालों ने कहा,
"अब मुसीबत गले पड़ ही गई है,
तो चलो इसे एक अंधेरे कोने में बिठाएं,
इसे क्या करेंगे पढ़ाकर,
आओ इसे घर के काम काज में ही लगाएं"...
और अगर कुछ 'इज़्ज़तदार' लोगों ने मुझे पढ़ा भी दिया,
तो ये कहने की बजाय कि,
"बिटिया, जाओ पढ़ लिखकर दुनिया में अपना मुकाम बनाओ",
ये कह दिया,
"अरे पढ़ लो ताक़ि तुम एक degree ले आओ,
और अच्छे घर में शादी करके जाओ,
हमें भी भारी दहेज देने से बचाओ,
फिर ससुराल के चूल्हे में वो degree जलाओ"...
हर रोज़ मुझपर 9 से 5 की बन्दिश लगाई गई,
और 'दुनिया बड़ी खराब है' या 'लड़की की इज़्ज़त से ही घर परिवार है' ये दलीलें हर बार सुनाई गयीं...
फिर मेरे बचपन से जवानी और जवानी से बुढ़ापे का सफ़र,
कट गया यूँही बस,
कभी मेरे कपड़ो की लंबाई तय करने में
तो कभी मेरी 'ना' को 'हाँ' और 'हाँ' को 'ना' समझा जाने में...
मेरी ज़िंदगी कट गयी कभी माँ, तो कभी बेटी, तो कभी बीवी के फ़र्ज़ निभाने में...
फिर बन गयी मोहताज,
कभी अपने तो कभी बेगाने दरिंदों के गंदे इरादों की,
कभी दिन के साफ़ उजाले में, तो कभी रात के खौफ़नाक अंधेरे में,
कभी नन्ही सी जान बनकर, तो कभी ढलती शाम बनकर,
बस उम्र के हर मोड़ पर लोगों का तमाशा बनती गयी,
बिन आवाज़ हवस की आग में झोंक दी गयी,
और आवाज़ उठाने पर characterless सरेआम बुलाई गई...
फिर तोहमत भी मुझी पर लगाई गई,
ये कहकर कि "इसके कपड़ों में खराबी थी,
ये रात को party में जाती थी,
ये आवारा लड़कों को दोस्त बनाती थी,
फिर उनको ये ही उकसाती थी,
ये हर अन्जान से बहुत बतियाती थी"..
आज मैं पूछती हूँ ये तुम सबसे,
मुझे समाज के उसूलों में जकड़ने की बजाय,
क्यूँ नहीं तुम लड़कों के लिए कुछ उसूल बनाते,
उनको मेरी इज़्ज़त करना सिखाते,
अपनी हवस को काबू में कैसे करना है ये बतलाते,
या फिर उन्हें अपने घर में ही बिठाते..
मेरे कपड़ों की लम्बाई नापना छोड़कर,
उनकी नज़रों में तहज़ीब जगाते...
क्यूँ नहीं तुम दुनिया को ऐसा बनाते,
जो सभी के लिए एक सी हो,
जिसमें लड़का और लड़की में कोई फ़र्क ना हो,
जिसमें मेरे बाहर निकलकर ज़िन्दगी जीने पे कोई बन्दिश ना हो,
जिसमें मेरी 'ना' को 'ना' और 'हाँ' को 'हाँ' ही समझा जाए,
और मुझे छूने से पहले मेरी इजाज़त ली जाए,
जिसमें मुझे कुछ रिश्तों से नहीं,
बल्कि अपनी काबलियत के दम पे पहचाना जाए..
मैं पूछती हूँ तुम सबसे,
कि खुदा ने मुझको बनाकर इस दुनिया को खूबसूरत तो कर दिया,
पर तुम लड़कों को तहज़ीब सिखाकर इसे मैला होने से कब बचाओगे,
ऐसी दुनिया तुम मुझ जैसी कितनी लड़कियों की बली चढ़ने पर बनाओगे...
See the video here:
https://youtu.be/UoGq8i8f3tk
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