शायर की फ़रियाद




उन्होंने कहा लिखना छोड़ो,
तुम अपनी कलम से लफ्ज़ों को बहाना छोड़ो,
ये कोई असली काम नहीं,
इससे पैसों का कोई इंतज़ाम नहीं,
शायर तो हर गली में फिरते हैं,
तुम ऐसा क्या कर लोगे,
जो उस फ़लक के चाँद को धर लोगे! 
मैंने कहा मुझे ना पैसा चाहिए ना शोहरत,
बस दिल की कहानी सुनाना चाहता हूँ,
कुछ जज़बात जो मर गए हैं,
उन्हें फिर से ज़िन्दा करना चाहता हूँ,
शायद मेरे हिस्से ख़ुशी नहीं आयी,
पर अपने लफ्ज़ों से लोगों में खुशियाँ बाँटना चाहता हूँ,
प्यार, दोस्ती, वफ़ा, और इंसानियत के रँग,
जो अब फीके पड़ गए हैं,
उन्हें अपनी कलम से फिर गहरा करना चाहता हूँ, 
हक़ीक़त की ज़मीन से डर लगता है,
मैं ख्वाबों के आसमान में उड़ना चाहता हूँ,
मुझे मत रोको,
मैं सिर्फ़ लिखना चाहता हूँ...

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