सुनो माँ

सुनो माँ तुम्हारी बहुत चिंता होती है,
जब तुम्हें वो सफ़ेद कोट, stethoscope और face mask पहने देखती हूँ,
तो गर्व तो बहुत होता है,
पर एक अन्जाना सा डर भी लगता है,
फ़ोन पे कह नहीं पाती हूँ मगर,
सुनो माँ, तुम्हारी बहुत चिंता होती है...

मुझे आज भी याद है 
जब तुम देर रात की duty करके सुबह hospital से लौटती थी,
बिना आराम किये फिर सीधा kitchen में पहुँच जाती थी,
अपनी भूख प्यास भूलकर हमें पकवान बनाकर खिलाती थी,
तब तो यही सोचती थी कि mummy आएगी तो नाश्ता मिल ही जायेगा,
मगर आज समझ में आया कि तब तुम कितना थक जाती थी,
फिर भी हमारे बारे में ही सोचती रहती थी...

और जब मैं तुमसे छुपकर tv देखा करती थी,
तो घरवाले ये कहकर कि 'देख आ गयी तेरी mummy'
मुझे नीचे बुलाते थे,
और मैं झट से tv बंद करके भागकर चली जाती थी,
तब वो ये कहते थे कि 'तू mummy से बहुत डरती है',
हाँ ये तो सच है कि मैं आज भी तुम्हारी डाँट से उतना ही डरती हूँ,
मगर तुम्हारी परवाह भी बहुत करती हूँ...

जब मैं तुम्हारे पास थी तो तुमसे नोक झोंक भी खूब होती थी,
कभी पढ़ाई को लेकर तो कभी कपड़ों को लेकर,
कभी दोस्तों को लेकर तो कभी शादी को लेकर,
और तुम कहती थीं कि 'जब तुम्हारे खुद के बच्चे होंगे ना तब तुम्हें समझ आएगा'
पर जब मैं शादी करके तुमसे दूर गयी,
तो वही नोक झोंक बहुत याद आती थी,
तभी तो कभी कभी call करके आज भी झूट मूठ की लड़ाई कर ही लेती हूँ...

आजकल तुमसे बात किये बिना दिन ही नहीं निकलता,
तुम्हें देख लेती हूँ तो एक तसल्ली सी हो जाती है,
और जब मन उदास होता है तो कई बहाने बनाकर तुम्हें फ़ोन लगाती हूँ,
माँ, तुम्हें कह नहीं पाती मगर सच में तुम्हारी बहुत चिंता होती है...

Comments

Popular posts from this blog

Have We Become Productive Machines? The Battle of Productivity and Mental Well-being

Breaking the Chains: Unraveling the Ties Between Mental Illness and Substance Use for a Healthier Future

Embracing the Odyssey: Revel in Your Journey, Celebrate Your Triumphs