रात की खामोशी



ये रात की ख़ामोशी एक दास्तान कहती है,
इसे सुन कर तो देखो,
मेरे ख्वाबों की ताबीर सरेआम कहती है,
खुद को मेरी पलकों का निगेहबान कहती है,
मेरी धड़कनों में छुपी हर आह को एक सुरीला साज़ कहती है,
मेरे चेहरे पे पड़े नकाबों को फ़रेब का दूसरा नाम कहती है,
उस चाँद की चाँदनी को ख़ुदा का भेजा फ़रमान कहती है, 
उन सितारों के झुरमत्त को अपना सबसे ख़ास महमान कहती है, 
अपनी सिहायों के तूफानों में भटके चंद अरमानों को,
सुबह के साहिलों तक पहुँचाने का इंतज़ाम कहती है,
उस पँछी के थके पँखों को अपने आग़ोश में
दो पल सुकूँ दिलाने का पयाम कहती है,
खुद को 'ज़िन्दगी' नाम के मर्ज़ का इलाज बताने वाला चरागर कहती है,
हर बार एक ख़लिस ज़ुबान कहती है,
इसे महज़ एक सराब न समझना तुम,
ये न जाने कितनी दफ़्न हकीकतों की कहानियाँ खुलेआम कहती है,
हाँ, ये रात की ख़ामोशी एक दास्तान कहती है...

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