एक ज़मीं एक आसमाँ


एक ज़मीं मेरी भी है,
कहीं ख्वाहिशों के बागीचों की,
एक आसमाँ मेरा भी है कहीं,
ख्वाबों की उड़ानों का,
ढूँढती फिरती हूँ जिसे हौंसलों की लौ लिए,
रखा है मेरा वो सारा जहान कहीं बुलंदियों के आशियानों का...
ज़िंदगी की रेत में था दफ़्न कहीं मगर आज ढूँढ कर निकाला है,
देर से ही सही पर अब बहुत प्यार से संभाला है,
कोई चुरा न ले जाये इसे हर वक़्त यही खौफ़ सताता रहता है,
ये दुनिया बड़ी ज़ालिम है,
यहाँ काफ़िरों का मजमा चारों ओर घूमता रहता है...
रखूँगी महफ़ूज़ इसे अपनी सरहदों के बक्से में,
साबुत नहीं तो टुकड़े ही सही मगर सजाऊँगी इसे अपने वजूद के नक्शे में..
क्यूँकि, एक ज़मीं मेरी भी है कहीं ख्वाहिशों के बागीचों की,
एक आसमाँ मेरा भी है कहीं ख़्वाबों की उड़ानों का...

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