ख़ुशी की फ़िराक़
किस खुशी की फ़िराक़ में खानाबदोशों से फिरते हो, जब बच्चे थे तो एक खिलौना पाकर ही चहक जाते थे, अब जो सयाने हो गए हो तो सारी कायनात मिलने पर भी गुमसुम रहते हो.. सुनो तो, किस जल्दी में हमेशा होते हो, वक़्त का काँटा तो चलता ही रहेगा, तुम तो दो पल रुक कर इस लम्हे का लुत्फ़ उठाओ... जिस खुशी को तुम नायाब समझते हो ना, उसे अपने घर में ही ढूँढो ज़रा, हर कोने में उसका निशान पाओगे... उस फ़लक के चाँद को पाने की ख्वाहिश में, क्यूँ इस ज़मीन पे गिरती चाँदनी को अनदेखा करते हो... बताओ तो किस खुशी की फ़िराक़ में तुम खानाबदोशों से फिरते हो... चलो आज फ़र्ज़ के धुँए में गुमशुदा उस बेपरवाह बचपन की गलियों का एक चक्कर लगाएं, उस कागज़ की कश्ती को एक बार फिर से बारिश के पानी में चलाएं, माँ की गोदी में सर रखकर परियों की दुनिया की सैर कर आएं, बहुत अरसा हुआ दोस्तों के साथ हँस खेलके, चलो आज उनसे बेवजह की गप्पें लड़ाएं.. हर रोज़ सुबह office की जँग की तैयारी में इस कदर मसरूफ़ रहते हो, आओ ज़रा balcony में उगते सूरज के नीचे सुकून से गरम चाय की चुस्की लगाएं... Ac वाले कमरों में रोज़ अपनी स...